बिहार पत्रिका डिजिटल, Indian Politics: भाजपा के खिलाफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एकजुटता की पहल पर ग्रहण लगता नजर आ रहा है। हालांकि, विपक्षी दलों की महाबैठक पर सबकी निगाहें टिकी हैं। इस बीच महाबैठक से महज पांच दिन पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कांग्रेस के सामने बड़ी शर्त रख दी है। जबकि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने आने से मना कर दिया है। इसके बाद उन्हें मनाने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद जा रहे हैं।
वहीं कांग्रेस ने ऐलान कर दिया है कि इस बैठक में राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे शामिल होंगे। लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के शामिल होने पर संशय के बादल छा गए हैं। दरअसल, शनिवार को टीएमसी प्रमुख ने ऐलान कर दिया कि कांग्रेस अगर बंगाल में सीपीएम के साथ चुनाव लड़ेगी तो वह भाजपा के खिलाफ उनके समर्थन की उम्मीद न करें।
ममता ने कहा कि कांग्रेस तो बहुत राज्यों में रही है। वे संसद में हमारा सहयोग चाहते हैं। हम भाजपा के खिलाफ उनका साथ देने को तैयार हैं। लेकिन बंगाल में सीपीएम से हाथ मिलाने के बाद आप हमसे सहयोग मांगने न आएं। ऐसे में अब इस बात पर संशय की स्थिति बन गई है कि जिस बैठक के लिए खुद ममता बनर्जी ने पहल की वे खुद इस बैठक में आएंगी या नहीं?
अब ऐसे में इस बात की चर्चा तेज है कि पटना में जिस महाबैठक की पहल खुद ममता बनर्जी ने की थी, वे हीं इससे गायब रहेंगी तो अन्य विपक्षी पार्टियों के बीच क्या संदेश जाएगा। या फिर कांग्रेस दीदी की शर्त मान लेगी और केंद्र की सत्ता के लिए बंगाल में टीएमसी से समझौते के लिए राजी हो जाएगी।
इस बात की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि ममता बनर्जी खुद न आकर अपनी पार्टी के किसी अन्य नेता को महाबैठक में भेजने की योजना बना रहीं हो। हालांकि, नीतीश कुमार ने पहले ही सभी विपक्षी दलों को दो टूक कह दिया है कि बैठक में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का होना जरूरी है।
नीतीश के बंगाल दौरे पर ममता ने कहा था वे पटना आएंगी। अब ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि 23 जून को होने वाली महाबैठक में राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खडगे के साथ ममता बनर्जी का आमना-सामना होता है या केंद्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ नीतीश कुमार के एकजुटता की कोशिश विफल हो जाती है।