बिहार पत्रिका। अमित कुमार झा
भागलपुर। बिहार। श्रावणी मेले में कांवर यात्रा के कई रुप देखने को मिल रहे हैं। हावड़ा के कांवरिया आकर्षक कांवर लेकर चल रहे हैं, कांवर यात्रा हर गम दुःख व कष्ट मिटाने का अचूक माध्यम बन रहा है।
कांवरियों को इस यात्रा में सब कुछ मिल जाने की इच्छा रहती है। मान्यता है कि कांवर यात्रा से बाबा बैद्यनाथ जल्द प्रसन्न होते हैं। हर साल कांवरियों की संख्या बढ़ रही है, कांवर यात्रा के भी कई अलग- अलग रूप होते हैं। कांवर यात्रा में साधारण कांवरिया डाक कांवरिया, दांडी कांवरिया तथा खड़ेश्वर कांवरिया है।
साधारण कांवरिया रुक-रुककर बाबाधाम जाते हैं जबकि, डाक कांवरिया 24 घंटे के अंदर ही बाबा पर जलार्पण करने का संकल्प लेते हैं। दांडी कांवरिया अपने पूरे शरीर को दंडवत करते हुए चलते हैं, पूरी शरीर की जो लंबाई होती है एक बार में उतना ही रास्ता तय होता है। लेटकर दंड प्रणाम करते हुए रास्ता तय किया जाता है। यह काफी कठिन साधना होती है। इस यात्रा में एक से डेढ़ माह लगता है। खड़ेश्वर कांवरिया में कांवर लेकर बैठा नहीं जाता है, कांवर को कंधे पर खड़ा ही रखना पड़ता है। दूसरे सहयोगी को कांवर देकर खड़ा रखते हुए कांवर लेने वाले कांवरिया विश्राम करते हैं।
कांवर यात्रा में कांवर के भी कई रूप हैं, जो आधुनिक रंग में दिखने लगा है। पटना, बंगाल, दिल्ली आदि स्थान के कांवरियों का कांवर काफी आकर्षक व आधुनिक रूप लिये होता है।