बिहार पत्रिका। अमित कुमार झा
सावन का महीना शिव भक्तों के लिए शिव भक्ति का खास महीना माना जाता है। वैसे तो शिव भक्त निरंतर सालों भर सुल्तानगंज के पवित्र उत्तरवाहिनी गंगा में स्नान कर जल भरकर कांवर यात्रा करते हैं, लेकिन सावन के महीने में कांवर यात्रा का विशेष महत्व है।
इसका जिक्र शिव पुराण में भी वर्णित है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव के अनन्य भक्त लंकापति रावण ने कांवर ढोने की शुरुआत की थी। कहा जाता है कि सावन में रावण हरिद्वार से जल लेकर कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव को जलार्पण किया करते थे। उसी समय से भगवान शिव को कांवर चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।
वहीं देवघर के बाबाधाम ज्योतिर्लिंग की मान्यता कम नहीं है। देश के बारहवें लिंग में देवघर का ज्योतिर्लिंग शामिल है, जिसे कामनालिंग भी कहा जाता है। तभी तो सावन के साथ सालों भर शिव भक्तों का रैला यहां उमड़ता रहता है। ऐसी मान्यता है कि सावन में बाबा भोलेनाथ माता- पार्वती संग देवघर में ही विराजते हैं।
प्रमाणिक और प्रचलित मान्यता यह है कि लंकापति रावण के द्वारा ही भगवान शंकर की स्थापना यहां हुई थी, इसलिए इन्हें रावणेश्वर महादेव भी कहा जाता है। यहां सच्चे मन व सच्ची निष्ठा व आस्था के साथ जलाभिषेक करने वाला हर भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती है। इसलिए इन्हें कामनालिंग भी कहा जाता है। साल में एक लंबे अंतराल के बाद सावन का महीना आते ही शिव भक्त भगवान शिव की भक्ति में बौरा जाते हैं। इस महीने में हर कोई शिव भक्त बाबा भोलेनाथ की कृपा के लिए यात्रा करते हैं। बम भोले व हर- हर महादेव की जयकारे से शिव भक्तों को शांति मिलती है। जहां सावन का महीना प्रारंभ होते ही शिव भक्त देवाधिदेव महादेव के प्रति श्रद्धा, आस्था व समर्पण के साथ शिव भक्त बोलबम के जयकारे के साथ सुल्तानगंज के पवित्र जहान्वी गंगा में से जल भरकर नया कांवरिया पैदल पथ में तिलडीहा मोड़ से होकर बाबाधाम जलाभिषेक करने को जाते हैं।
जहां शिव के प्रति अटूट आस्था रखने वाले भक्त लंबी दूरी 105 किमी की यात्रा कर हंसते- खेलते पूरा करते हुए पहुंच जाते हैं। वरना जिस भक्तों का भगवान शंकर पर से ध्यान हट जाता है, उनके लिए बाबाधाम का पैदल यात्रा करना आसान नहीं होता है और उसे पूरा कर भी नहीं पाते हैं। कहते हैं कि बोलबम का नारा है….. बाबा एक सहारा है। सचमुच इस मार्ग में बाबा के सहारे के बगैर कांवरिया अपनी इस तीर्थयात्रा को पूरी नहीं कर सकते हैं।
*कांवर यात्रा के नियम:-*
01- कांवर यात्रा के पूर्व नख, बाल बनाकर तेल कंघी का प्रयोग वर्जित
02- लघुशंका और शौच करने के बाद स्नान करना अनिवार्य है।
03- कांवरिया तीर्थयात्री को कांवर यात्रा में कंधा बदलना हो तो सिर के ऊपर से कांवर नहीं बदलना चाहिए, बल्कि पीछे से दूसरे कंधे पर ले जाना चाहिए।
04- जिस जगह कांवर रखा जाता है, उसके आगे कांवरिया तीर्थयात्री को विश्राम नहीं करना चाहिए।