दैनिक बिहार पत्रिका डिजिटल, नई दिल्ली। मुसलमानों में खतना एक धार्मिक संस्कार माना जाता है। इस्लाम में इसे सुन्नत माना जाता है। इसका जिक्र कुरान में लेकिन इसे पैगंबर मोहम्मद का तरीका माना जाता है। इसमें मुस्लिम पुरुषों के लिंग के अगले हिस्से के त्वचा को हटा दिया जाता है। यह इस्लाम में सुन्नत माना जाता है तो इस वजह से हर मुस्लिम ये करवाता है।
कितना जरूरी है खतना
खतना एक लैटिन शब्द है। इसका अर्थ होता है काटना। खतना शब्द को लेकर इस्लाम में यह दलील दी जाती है कि इससे प्राइवेट अंग की साफ़-सफाई रहती है। किसी व्यक्ति का खतना हुआ रहता है तो उसे लिंग की चमड़ी हटी हुई रहे है। इसमें लिंग के ऊपर कोई ऐसी चीज नहीं रहती, जिससे उसमें यूरिन या स्पर्म फंस सके। कुछ लोग बच्चे के जन्म के 7 दिन बाद ही उसका खतना कर देते हैं। वहीं कुछ लोग बच्चे की उम्र 7 साल होने पर उसका खतना करवा देते हैं। कुछ मुस्लिम देश ऐसे भी है जहाँ पर बच्चा जब कुरान पढ़ने लगता है तब उसका खतना कराते हैं।
इस्लाम में खतना न कराना नाजायज
इस्लाम में खतना नहीं कराना नाजायज माना जाता है। हर मुसलमान खतना कराता है क्योंकि यह पैगंबर मोहम्मद की चार सुन्नतों में आता है। इस्लाम में खतना कराना, मिस्वाक करना, इतर लगाना और निकाह करना सुन्नत माना जाता है। इसलिए हर मुस्लिम अपना खतना करवाते हैं। हालांकि इससे यह जरूरी नहीं है कि जो खतना नहीं करवाए वो मुसलमान नहीं है लेकिन इसे न कराना गुनाह जरूर है।